देश की आजादी में जैन समाज का भी योगदान रहा-खरतरगच्छाधिपति
सूरत।अवंति तीर्थोद्वारक,युग दिवाकर मोकलसर नंदन,केयुप-केएमपी प्रणेता, खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिन मणि प्रभ सूरीश्वर जी म.सा. ने अपने आज के विशेष प्रवचन देश की आजादी कैसे मिली और आज के मायने में आजादी का महत्व क्या है उसे समझना है।
कुशल कांति खरतरगच्छ जैन संघ के तत्वाधान में चल रहे चातुर्मास के विशेष प्रवचन में कहा कि आज का दिन देश और दुनिया के सभी लोगो को याद है। आज के दिन भारत को अंग्रेजो से आजादी मिली थी ।
उन्होंने आगे कहा कि आज यह किसी को भी याद नहीं है कि उस दिन तिथि क्या थी,वार कोनसा था,विक्रम संवत कौनसा था ? भारत की आजादी के दिन विक्रम संवत 2004 था, उस वर्ष चातुर्मास पांच माह का था,तब श्रावण दो थे,और पर्युषण पर्व की आराधना चल रही थी,श्रावण दो होने से दूसरे श्रावण मास में पर्युषण थे,उस दिन चौदस का दिन और शुक्रवार था, जब देश आजाद हुआ था। उस दिन सभी सताइस नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र पुण्यनक्षत्र का योग था। तब 14 अगस्त की अर्द्ध रात्रि को अंग्रेजो का झंडा हटा दिया गया था और देश आजाद हो गया था।
उस आजादी की हमे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी।जब आजादी के दिन पहले ही पाकिस्तान की घोषणा हो गई थी।जिसमे जो भी मुस्लिम है वो पाकिस्तान चले जावे एवं जो पाकिस्तान के क्षेत्र में हिंदू है वो भारत आ जावे।
आजादी का यह जश्न खून की नदियों में तब्दील हो गया था। चारो तरह का वातावरण हिंसात्मक हो गया था ।
उस समय भारत के कई हिंदू के साथ साथ जैन परिवार जो पाकिस्तान के मुल्तान ,हाला आदि क्षेत्रों में रहते थे। उस समय पाकिस्तान के जैन समाज का जैन आचार्य श्री जिन वल्लभ सूरी जी का चातुर्मास चल रहा था। जैन समाज के लोगो ने आचार्य श्री से कहा कि पहले आप सुरक्षित रूप से भारत चले जाओ, आचार्य श्री ने जैन समाज के कहा कि पहले मेरे जैन परिवार जायेंगे, फिर में जाऊंगा।उन्होंने एक सभा कर सभी जैन लोगो को इक्कठा किया और वार्तालाप कर सभी को ट्रको में भरकर भारत भेजना शुरू किया।उसके बाद आप खुद भारत के पंजाब राज्य में सुरक्षित पहुंच गए।
उस समय मुल्तान और हाला गांव के लोग अपनी संपत्ति,धन माल,पैसा सब कुछ छोड़कर भारत आए थे,लेकिन उन्होंने वीतराग प्रमात्मा के प्रति श्रद्धा के भाव नही छोड़े,जितनी प्रतिमा आदि थी सब साथ लेकर ही भारत आए थे। उनका सोचना था की संपति तो पुण्य से फिर कमा लेंगे,लेकिन अरिहंत परमात्मा पुनः नही मिलेंगे।
उस समय मुल्तान एवं हाला से लाई हुई प्रतिमा आज भी मुंबई और ब्यावर में विराजमान है।मुल्तान एवं हाला के परिवार दादा गुरुदेव के प्रति श्रद्धा रखने के कारण आज देश भर में फैले हुवे है।दादा गुरुदेव श्री जिन कुशल सूरी जी की समाधि स्थल भी वर्तमान में देरासर पाकिस्तान में है।आज के दिन हमे उन शहीदों को याद करना है जिन्होंने भारत की आजादी हेतु अपना सब कुछ बलिदान कर दिया था। उस समय की आजादी और आज की आजादी का महत्व बदल गया है।आज हमे देश के प्रति पूर्ण रूप से अंतर्मन के भावों के साथ नैतिकता के पाठ को याद करना है।
देश के संविधान बनाने में जो डॉ.भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में कमेटी बनी थी। उसके चार प्रमुख लोगों में से एक जैन भाई मास्टर बलवंतसिंह भंसाली जो उदयपुर के थे वो भी खरतरगछ की परम्परा को मानने वाले। दादा गुरुदेव के परम भक्त थे बाद ने राजस्थान सरकार के पहले मंत्रिमंडल में उनको मंत्री पद भी दिया गया था।
संघ अध्यक्ष ओम प्रकाश मंडोवरा ने बताया कि 15 अगस्त को गुरु गौतम स्वामी का पुजन रखा गया। जिसमें कई परिवारों ने लाभ लिया। संघ विविध तपस्या जारी है और देश भर से धर्मानुरागी बंधुओ का आना जारी है।