- दुःख मुक्ति का मार्ग है संयम - आचार्य महाश्रमण
- सिटीलाईट तेरापंथ भवन में तेरापंथ सरताज का पदार्पण
- आराध्य के स्वागत के क्षणों में सूरत बना महाश्रमणमय
- कल भगवान महावीर यूनिवर्सिटी वेसू में चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
सूरत।सूरत शहर की सूरत आज की बदली बदली सी थी, हर ओर लोगों में उल्लास, उमंग छाया नजर आ रहा था और हो भी क्यों नहीं जब इतने लम्बे समय की प्रतीक्षा पश्चात जीवन की राह दिखाने वाले गुरु, जन जन के आराध्य आचार्य श्री महाश्रमण जी का यहां पदार्पण हो रहा हो। प्रातः जैसे ही लिंबायत से आचार्यश्री ने सिटीलाइट तेरापंथ भवन के लिए प्रस्थान किया। जैसे जैसे काफिला बढ़ता जा रहा था आचार्य श्री के साथ जनसमूह भी बढ़ता जा रहा था। जगह जगह नारे लगाते हुए श्रद्धालु जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्यारहवें अधिशास्ता का स्वागत कर रहे थे। लिंबायत का तेरापंथ भवन इस बीच गुरु चरणों से पावन बना। मार्ग में जैसे ही गुरुदेव उधना पधारे तो मानों उधनावासियों का उत्साह हर्ष हिलोरे लेने लगा। हजारों की संख्या में सड़क के दोनों ओर खड़े बच्चे–बूढ़े सभी आचार्य श्री की एक झलक पाने को लालायित नजर आ रहे थे। इतनी विशाल उपस्थिति में भी अनुशासन बद्ध तरीके से चल रहे श्रद्धालुओं ने सबको तेरापंथ धर्मसंघ की अनुशासन शैली की स्मृति करा दी। एक वर्ष पूर्व के पदार्पण से इस बार का पदार्पण कुछ अलग उल्लास लिए हुए था। क्युकी थी सिर्फ 22 दिनों का लघु प्रवास सूरत वासियों को प्राप्त हुआ था और इस बार चातुर्मास की लंबी अवधि से सभी लाभान्वित होने वाले है। लगभग 10 किमी शहर में पदयात्रा कर गुरुदेव सिटीलाइट के तेरापंथ भवन में पधारे तो हजारों श्रद्धालुओं को प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के 2003 के चातुर्मास की स्मृति हो आई। हजारों श्रद्धालुओं ने जयघोषों को गुंजायमान कर शांतिदूत का तेरापंथ भवन में स्वागत किया।
सभा भवन में उपस्थिति श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा– मनुष्य दुःख से डरता है। कोई भी व्यक्ति दुःखी होना नहीं चाहता। यह जीवन अनेक समस्याओं से घिरा रहता है। कभी शारीरिक तो कभी मानसिक समस्याएँ भी आती है। कोई रोग आदि हो जाए, बीमार हो जाए तो कष्ट। कोई अपमान कर देता है व मन के प्रतिकूल घटनाएँ भी घटित हो जाती है तो भी व्यक्ति दुखी भी बन जाता है।भगवान महावीर ने दुःख मुक्ति का मार्ग बताते हुए कहा कि स्वयं का, अपनी आत्मा का निग्रह करो। संयम के द्वारा व्यक्ति दुःखों से बच सकता है।
गुरुदेव ने आगे बताया कि कोई गाली भी दे तो उसे वापिस गाली न दें, अपशब्द न बोले। व्यक्ति सोचें कि दुसरे के बोलने से मैं खराब नहीं हो जाता ऐसे में मैं क्यों परेशान व दुखी बनूं ? यह बोलने वाले की अमहानता है, मेरे लिए कोई खास बात नहीं। गाली के बदले गाली देने से उग्रता बढ़ती है, बात विवाद का रूप ले लेती है। जो करे हमारा विरोध हम उसे समझे विनोद यह सूत्र अपनाना चाहिए। यदि क्षमा का खड़ग हमारे पास है तो कोई दूसरा दुखी नहीं बना सकत। व्यक्ति के मन में क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या की भावनाएं होती है उनसे बचना चाहिए। कषायों को भी मंद कर और कामनाओं की सीमित कर व्यक्ति दुःख मुक्ति के मार्ग पर बढ़ सकता है।
प्रसंगवश गुरुदेव ने उल्लेख करते हुए फरमाया की आज सिटीलाइट के इस भवन में आना हुआ है। सन 2003 के चातुर्मास की कई स्मृतियां ताजा हो गई। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के साथ तब मैं युवाचार्य रूप में था। उस समय अब्दुल कलाम जी का आना हुआ और भी धर्म गुरुओं के साथ विभिन्न कार्यक्रम भी यहां हुए।
इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित केंद्रीय राज्यमंत्री श्री डॉ. एल मुरुगन ने आचार्यश्री का स्वागत किया एवं कहा कि मेरा सौभाग्य है जो आपके दर्शन करने का और इस प्रवेश के अवसर पर आने का मुझे मोका मिला।
स्वागत अभिनंदन के क्रम में तेरापंथ सभा सूरत अध्यक्ष श्री मुकेश बैद, मैनेजिंग ट्रस्टी श्री बाबूलाल भोगर, तेयुप अध्यक्ष श्री अभिनंदन गादिया, महिला मंडल अध्यक्षा श्री चंदा भोगर ने अपने विचार रखे। तेरापंथ सभा सदस्य, किशोर मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला प्रशिक्षिका एवं कार्यकर्ताओं ने सामूहिक गीतों की प्रस्तुति दी।
*सूरत से मुम्बई की दूरी 280 किमी : आचार्यश्री ने तय किया 2000 किमी का सफर*
सूरत और मुंबई के मध्य जहां केवल 280 किलोमीटर का फासला है। कार आदि गाड़ी के माध्यम से आए तो छह घंटे, निरंतर पैदल चले तो तीन दिन। वही आचार्यश्री महाश्रमण जी जिन्होंने सन 2023 में मई माह में अक्षय तृतिया सूरत में की और फिर मुंबई महानगर और महाराष्ट्र के सैंकड़ों गांवो को पावन बनाकर तेरह माह और दो हजार किलोमीटर से अधिक का सफर तय कर सूरत पहुंचे है। जनकल्याण के लिए समर्पित आचार्य श्री ने इन दरमायन महाराष्ट्र के तेरह जिलों का स्पर्श किया एवं गांव गांव जाकर हजारों लोगों को नशामुक्त बनाया।