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अनित्यता की अनुप्रेक्षा कर मोह को करें कम : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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 -13 कि.मी. का विहार कर बाजीपुरा में पधारे तेरापंथाधिशास्ता

-बाजीपुरावासियों ने किया आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन

बाजीपुरा,तापी।डायमण्ड व सिल्क सिटी के रूप में प्रख्यात सूरत शहर में चतुर्मास करने से पूर्व जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में गुजरात राज्य के तापी जिले को अपनी चरणरज से पावन बना रहे हैं। दो दशक के बाद अपने क्षेत्र में अपने आराध्य के आगमन से हर्षित श्रद्धालु सौभाग्य से प्राप्त इस अवसर का पूर्ण लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं। 

मंगलवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में व्यारा से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। आज भी आसमान में बादल छाए रहे, किन्तु वर्षा के अभाव में उमस अपना प्रभाव बनाए हुए थी, किन्तु प्रातःकाल मंद गति से चलने वाली हवा उससे थोड़ा राहत दिलाने का प्रयास कर रही थी। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए गंतव्य की ओर गतिमान थे। लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री बाजीपुरा में पधारे तो बाजीपुरावासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री महाश्रमणजी बाजीपुरा के एकदिवसीय प्रवास के लिए बाजीपुरा हाईस्कूल में पधारे। 

स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि दुनिया में नित्य तत्त्व भी होते हैं तो अनित्य तत्त्व भी होते हैं। कोरी नित्यता और कारी अनित्यता नहीं होती। कहीं नित्यता की प्रधानता होती है और अनित्य गौण होता है तो कहीं अनित्यता की प्रधानता होती है और नित्य गौण अवश्य हो सकता है। आकाश लेकर दीपक तक सभी तत्त्व नित्यानित्य होते हैं। जैन धर्म में नित्यानित्यवाद की बात बताई गयी है। आठ प्रकार की आत्माएं बताई गई हैं। इनमें पहली आत्मा द्रव्य आत्मा होती है। आत्मा शाश्वत है। आत्मा का पर्याय परिवर्तन होता है। एक ही आत्मा कभी देव, कभी मनुष्य, कभी तीर्यंच तो कभी नरक गति में जाती है और चौरासी लाख जीव योनियों में भ्रमण करती है। यहां तक की एक आदमी ही अपने जीवनकाल में कभी बालक तो कभी युवा और कभी वृद्धावस्था को भी प्राप्त हो जाता है। आदमी के जीवन में पर्याय का परिवर्तन होता रहता है। 

इससे संसार में अनित्यता की अनुप्रेक्षा करते हुए आदमी को मोह, मूर्छा को कम करने का प्रयास करना चाहिए। यह शरीर अनित्य है, अशाश्वत है, इससे भी मोह को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अनित्य की अनुप्रेक्षा करे तो इससे कभी वैराग्य के भाव भी उत्पन्न हो सकते हैं। दुनिया में सभी संबंध भी अनित्य होते हैं। इसलिए आदमी को सभी प्रकार के मोह और मूर्छा को कम करने का प्रयास करना चाहिए तथा आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इससे आदमी का मानव जीवन सार्थक हो सकता है। 

आचार्यश्री के स्वागत में श्री गंगाराम गुर्जर, श्री पीयूष चोरड़िया व श्री मुकेश सुकलेचा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बाजीपुरा तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने बाजीपुरावासियों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।  

 

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