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अति लोभ से बचने व संतोष के विकास करें प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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-11 कि.मी. का विहार कर महातपस्वी पहुंचे नेर गांव

-पूज्य सन्निधि में आयोजित हुआ खानदेश स्तरीय कर्मणा जैन सम्मेलन 

-श्रद्धालुओं ने दी भावनाओं की अभिव्यक्ति, पूज्यप्रवर से प्राप्त किया आशीर्वाद

नेर,धुळे।धीरे-धीरे मानसून पूरे भारत में सक्रिय हो चुका है। आसमान में छाए बादल किन्हीं क्षेत्रों में मूसलाधार बरस रहे हैं तो कहीं-कहीं हल्की बूंदाबांदी कर लोगों को प्रचण्ड गर्मी से राहत प्रदान कर रहे हैं। आसमान में बादलों के विहरण से सूर्य किरणों बचाव तो अवश्य हो रहा है, किन्तु वातावरण में व्याप्त उमस लोगों को अधिक व्याकुल कर रही है। मौसम में हुए परिवर्तन से अप्रभावित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण के निरंतर गतिमान हैं। महाराष्ट्र के खानदेश क्षेत्र के धुले जिले में गतिमान शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को प्रातः कुसुंबा से मंगल प्रस्थान किया। गत रात्रि में हुई वर्षा और प्रातःकाल आसमान में छाए बादल गर्मी से राहत प्रदान कर रहे थे, किन्तु विहार के कुछ समय बाद ही बढ़ती उमस लोगों को पसीने से नहला रही थी। 

स्थान-स्थान पर उपस्थित लोगों को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। खानदेश के इस भाग में कर्मणा जैन निवास करते हैं। आज खानदेश स्तरीय कर्मणा जैन सम्मेलन भी पूज्य सन्निधि में आयोजित होना था, इस कारण आसपास के विभिन्न क्षेत्रों के कर्मणा जैन भी अपने पूज्य गुरुदेव के स्वागत को आतुर नजर आ रहे थे। आचार्यश्री जैसे ही नेर गांव में पधारे उपस्थित सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत-अभिनंदन किया। लोगों की अत्यधिक उपस्थिति मानों स्वागत जुलूस का रूप ले रही थी। आचार्यश्री लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर नेर में स्थित न्यू इंग्लिश स्कूल व जूनियर कॉलेज में पधारे। 

स्कूल परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी के भीतर लोभ की वृत्ति होती है। परिग्रहों के संग्रह की भावना भी होती है। आदमी के भीतर लोभ की वृत्ति के आधार पर अनेक अन्य वृत्तियां फलती-फूलती हैं। सामान्य प्राणी में लोभ की चेतना होती है। प्राणी को जहां लाभ होता है, वहां उसका लोभ भी बढ़ जाता है। जैसे-जैसे लाभ होता है, वैसे-वैसे लोभ भी बढ़ता चला जाता है। 

कोई आदमी एक दिन उपवास के बाद विचार करे कि मैं बेला कर लूं, तेला कर लूं, चोला कर लूं, आदि तपस्या के रूप में लालसा बढ़े तो वह अच्छी बात हो सकती है, किन्तु पदार्थों के प्रति अत्यधिक लोभ की भावना अच्छी नहीं होती। आदमी को अपनी लोभ की वृत्ति पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में थोड़ा लाभ और लोभ की बात तो हो सकती है, किन्तु अति लोभ से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में संतोष रूपी धन का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री ने कर्मणा जैन के उपस्थित लोगों को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि कर्मणा जैन की सार-संभाल भी खानदेश सभा द्वारा करने का प्रयास किया जाता रहे। कर्मणा जैन के घरों में भी श्रद्धा का विकास होता रहे। 

आचार्यश्री के स्वागत में विद्यालय के शिक्षक श्री प्रसाद शिंदे ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्कूल की छात्राओं ने स्वागत गीत का संगान किया। सम्मेलन के अंतर्गत श्री अरुण पाटिल, श्री प्रह्लाद भाई बोराला, खानदेश क्षेत्र के आंचलिक प्रभारी श्री ऋषभ गेलड़ा, खानदेश सभा के अध्यक्ष श्री नानक तनेजा, श्री अभिमन्यु पाटिल, श्रीमती मिनाक्षी पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कर्मणा जैन कन्या मण्डल ने गीत का संगान किया। कर्मणा जैन श्रद्धालुओं द्वारा नशामुक्ति आदि के संदर्भ में अनेक प्रस्तुतियां दी गईं। 

 

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