वापी में आयोजित अणुव्रत व्याख्यानमाला में मंगल उद्बोधन
वापी।अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तत्वावधान में अणुव्रत समिति, वापी द्वारा स्थानीय तेरापंथ भवन में अणुव्रत व्याख्यान माला का आयोजन आज दिनांक 20.03.2024 को मुनि श्री कोमलकुमारजी के सानिध्य में किया गया। जिसका विषय था ”जीवन में समस्याए अनेक- समाधान एक:अणुव्रत "
इस अवसर पर उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए मुनि श्री कोमलकुमार जी ने अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया -”अणुव्रत के नियम समस्याओं के समाधान के लिए हर कालखंड में प्रासंगिक हैं। आवश्यक है इसका क्रियान्वयन।"
मुनिश्री ने फ़रमाया कि स्वयं को बदलो,परिवर्तन स्वत: घटित होगा।
अणुव्रत एक जन धर्म है। धार्मिक होने के साथ व्यक्ति नैतिक हो,प्रामाणिक हो । संकल्प के साथ पालन से ही व्यक्ति से वैश्विक हर समस्या का समाधान संभव है। अणुव्रत की अवधारणा मानव मात्र के लिए थी अतः इसे राष्ट्रीय स्तर पर जन धर्म और नैतिक धर्म के रूप में स्वीकार किया गया है | मुनिवर ने आगे बताया कि पांचों इंद्रियों को वश में करने का साधन -अणुव्रत,जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान ये त्रिवेणी संगम है। इनके प्रभाव से मन तो स्वतः ही नियंत्रित होने लगेगा। उन्होंने कहा - “वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी भी नैतिकता, चारित्र निर्माण, व्यसन मुक्ति के त्रिआयाम, जो अणुव्रत के नियमों का हृदय है, इसे जन जन तक पहुंचाने हेतु निरंतर सुदूर यात्रा कर रहे हैं ।‘’ अणुव्रत एक असांप्रदायिक धर्म है, जिसमें वर्ग, जाति, धर्म, संप्रदाय आदि भेदभाव नहीं है। अणुव्रत की साधना किसी भी धर्म की उपासना करने वाला व्यक्ति कर सकता है, उसके लिए उसे किसी को गुरु या आराध्य मानने की आवश्यकता नहीं होती है। हर वो व्यक्ति अणुव्रती है जो प्रामाणिक जीवन जीने वाला है। मुनि श्री ने प्रेरणास्पद कहानी के माध्यम से उपस्थित जनसभा को अणुव्रत ,जीवन विज्ञान,प्रेक्षाध्यान जैसे अमूल्य अनुपम वरदान का महत्व समझाया। साथ ही चुनाव शुद्धि के लिए भी प्रेरित किया।
और सबको प्रेरणा दी-व्रती बने,बनाये और अनुमोदना करें।
समिति अध्यक्षा श्रीमती चन्दा जी दुग्गड़ ने अणुव्रत गीत के पद्य के माध्यम से विषय की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए सभी का स्वागत किया तथा बताया की अणुबम और अणुव्रत का अंतर जानने के लिए
आचार्य तुलसी आचार्य महाप्रज्ञ ने जीवन-विज्ञान, अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान आदि देकर विश्व जनमानस को बड़ी दिशा दी है।
पांचवी प्रतिमाधारी सुश्रावक श्रीमान रमेश जी डूंगरवाल ,(कुवान्थल राज). ने अपने वक्तव्य में कहा- अभी जो सुख संसाधन मिला वो पुण्याई का फल है,आगे क्या ले जाना है इस विषय पर विचार करें। "कर्मो को काटे, भोगे नहीं" "भावतन्त्र पर चोट करें” जैसा बनना चाहते हो, वैसा ही आचरण हो। उन्होंने आगे कहा कि अर्थ अथवा वस्तुओं की प्राप्ति के लिए सीमा का निर्धारण करना चाहिए। 'संयम ही जीवन है' । संयम सभी समस्याओं का समाधान है।
कार्यक्रम में विविध संस्थाओं के गणमान्य अतिथिगण एवं अणुव्रत कार्यकर्ताओं की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।