-भारी बरसात में भी भिक्षु विहार (प्रवास स्थल) से ही शांतिदूत ने दिया पावन संदेश
-भगवती सूत्र में वर्णित दत्त व अदत्त को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
मीरा रोड (ईस्ट)।मायानगरी मुम्बई में लगातार हो रही बरसात ने आम-जन जीवन को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है। जगह-जगह जलभराव से लोगों को मुश्किलों का सामना कर पड़ रहा है, किन्तु दृढ़ संकल्पधारी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को बरसात के कारण तीर्थंकर समवसरण में नहीं पधार पाए तो आचार्यश्री अपने प्रवास स्थल ‘भिक्षु विहार’ से ही समुपस्थित जनता को मंगल प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री की इस संकल्पशक्ति से श्रद्धालुजन अपने आराध्य की अमृतवाणी का रसपान कर आह्लादित थे। अपनी दृढ़ संकल्पशक्ति के साथ कीर्तिधर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नेपाल में हिमालय की चोटी तक की यात्रा की। इस दौरान आए भूकंप में भी आचार्यश्री मानों अडोल ही रहे। असम, मेघालय व नागालैण्ड जैसे सुदूर पूर्वोत्तर के प्रदेशों की विकट जंगल की यात्रा रही हो अथवा आग के गोले समान दहकने वाली दक्षिण की गर्मी हो हर जगह आचार्यश्री महाश्रमणजी की संकल्पशक्ति लोगों में नवीन ऊर्जा का संचार करने वाली रही।
गत दो दिनों से लगातार हो रही बरसात के कारण नन्दवन परिसर में स्थान-स्थान पर जलभराव की स्थिति बन गई। उसके बावजूद भी हो रही मूसलाधार बरसात के कारण निर्धारित समय पर तीर्थंकर समवसरण में तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी का जाना नहीं हो पाया तो आचार्यश्री ने अपने प्रवास स्थल ‘भिक्षु विहार’ से ही मंगल प्रवचन प्रारम्भ कर दिया।
भिक्षु विहार से आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने भगवती सूत्राधारित पावन प्रवचन में कहा कि भगवती सूत्र में बताया गया कि भगवान महावीर के स्थविर साधुओं से दूसरे साधुओं ने कहा कि आप लोग असंयमी हैं। भगवान महावीर के साधुओं ने पूछा कि हम असंयमी कैसे हुए तो उन आरोप लगाने वाले साधुओं ने बताया कि आप लोग अदत्त का सेवन करते हैं और उसकी अनुमोदना भी करते हैं। स्थविर साधुओं ने पूछा कि ऐसा कह सकते हो तो उन लोगों का कहना था कि आपके पात्र में जो दान देते हैं, उसे आपके पात्र के पास ऊपर से ही छोड़ देते हैं तो आपके पात्र में आने से पहले और उस दानदाता के हाथ से छूटने के बीच के समय के कारण तो वह अदत्त ही हो जाता है। इस पर भगवान महावीर ने समाधान प्रदान करते हुए कहा कि जो आदमी साधुओं को दान देने की नियत से भोजन आदि उठाया और साधु के पात्र के पास लाकर छोड़ता है तो उसने तो साधु को दान देने की नियत से ही भोजन को उठाया और पात्र तक लाया तो वह क्रिया तो दत्त ही हो जाती है। इसलिए साधु संयमी होते हैं और अदत्तादान के पूर्णतया पालक होते हैं। कोई वस्तु जब देनी प्रारम्भ कर दी गई तो वह दत्त ही होती है। पात्र में गिरने से पहले कोई उसे चुरा ले तो वह साधु की वस्तु चोरी हुई मानी जाती है। इस प्रकार दत्त, अदत्त और अदत्तादत्त चिंतन प्राप्त होते हैं।
अनाग्रह की भावना से कोई चर्चा की जाए तो उससे ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जैन शासन के अनेक आम्नायों में चर्चा-वार्ता होती थी। इससे ज्ञानात्मक विकास हो सकता है। चर्चा में राग-द्वेष की भावना न हो तो चर्चा-वार्ता से ज्ञान का विकास हो सकता है और अच्छा प्रतिफल भी प्राप्त हो सकता है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत विश्व भारती की ओर जीवन विज्ञान के कार्यक्रम के शुभारम्भ के संदर्भ में अणुव्रत विश्व भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय में प्रारम्भ व परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के निर्देशन में चलने वाली जीवन विज्ञान का उपक्रम अब काफी विकास कर गया है। इसके और विकास का चिंतन आदि का कार्य होता रहे। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़ व अणुव्रत समिति-सरदारशहर के अध्यक्ष श्री पृथ्वी सिंह ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने श्री चांदरतन दूगड़ को मंगलपाठ सुनाया।
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