महातपस्वी महाश्रमण की मंगल आर्षवाणी से हुई चातुर्मासकाल की स्थापना
-चातुर्मासिक चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हजारी का किया वाचन दी विविध प्रेरणाएं
घोड़बंदर, मुम्बई। रविवार को प्रातः लगभग साढ़े नौ बजे नन्दनवन में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने विशाल तीर्थंकर समवसरण में चतुर्विध धर्मसंघ की समुपस्थिति में अर्षवाणी का उच्चारण करते हुए वर्ष 2023 के पांच महीने के चतुर्मासकाल की विधिवत स्थापना की। आधे घंटे से अधिक समय तक श्रीमुख से होती आर्षवाणी से समूचा नन्दनवन गुंजायमान हो रहा था। आचार्यश्री ने इस सवाये चतुर्मास की स्थापना करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ को अनेकानेक प्रेरणाएं प्रदान कीं तथा इस चतुर्मासकाल का धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाने को अभिप्रेरित किया। आचार्यश्री ने चातुर्मासिक चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को उद्बोधित किया।
68 वर्षों बाद भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई की धरा पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी चतुर्मासकाल की स्थापना कर मुम्बई महानगर को निहाल कर दिया। नन्दनवन के विशाल व भव्य तीर्थंकर समवसरण में मंच के मध्य विराजमान तेरापंथ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के दोनों ओर उपस्थित गुरुकुलवासी साधु-साध्वियां और सामने की ओर समणीवृंद और श्रावक-श्राविकाओं की विराट उपस्थिति मानों महासूर्य की रश्मियों के विस्तार को प्रदर्शित कर रही थीं। आचार्यश्री ने सर्वप्रथम मंगलमयी आर्षवाणी का उच्चारण करना प्रारम्भ किया तो चतुर्विध धर्मसंघ ने भी अपने आराध्य के साथ आर्षवाणी का पाठ आरम्भ किया। इस समवेत स्वर ने पहाड़ों से घिरे नन्दनवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे थे।
चातुर्मासकाल की स्थापना की घोषणा करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि मुम्बई महानगर का इस चतुर्मास के कल्प क्षेत्र मीरा-भायंदर और बृहन्मुम्बई महानगरपालिका तक होगा। तदुपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जिनेश्वरों ने मार्ग प्रज्ञप्त किया। जीवन में मार्ग सही लिया जाए तो अभिष्ट मंजिल की प्राप्ति हो सकती है। यदि मार्ग ही गलत हो जाए तो अभिष्ट मंजिल की प्राप्ति की संभावना न के बराबर हो जाती है। मानव जीवन की परम मंजिल तो मोक्ष है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए ही आदमी साधुत्व को स्वीकार करता है। साधु-साध्वियों को चारित्रात्मा कहा जाता है। चारित्रात्मा शब्द में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप चारों समाविष्ट हो जाते हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के योग से ही मोक्ष का मार्ग निर्मित होता है।
इस बार पांच महीने का सवाया चतुर्मास है। चारित्रात्माओं को एकबार के लिए स्थिरता का समय है। शेष आठ महीने तो विहार का होता है। दोनों समयों की अपनी-अपनी उपयोगिता होती है। इस चतुर्मासकाल में आगम के अध्ययन, तप, साधना की जा सकती है। स्वाध्याय और ध्यान आदि का भी प्रयास किया जा सकता है। 50 साधु और 127 साध्वियां अनेकों समणियां आदि इस चतुर्मास में उपस्थित हैं। चतुर्मासकाल में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूपी चतुष्टयी मार्ग को पुष्ट और प्रशस्त बनाने का प्रयास होना चाहिए। बालमुनि साधु, साध्वियों और समणियों को ज्ञान को कंठस्थ करने का प्रयास करना चाहिए। कितने-कितने चारित्रात्माएं तो तप की ओर कदम भी बढ़ाने लगे हैं। श्रावक-श्राविकाएं भी 21 रंगी रूपी यज्ञ में भागीदार बनने का प्रयास करें। 68 वर्षों के अंतराल के बाद यहां चतुर्मास होने जा रहा है। इसका पूरा धार्मिक-आध्यात्मिक उठाने का प्रयास हो।
आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन किया तो समुपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखप का उच्चारण किया। न्यारा से गुरुकुलवास में समागत साध्वियों ने आचार्यश्री की आज्ञानुसार संत समाज को वंदन कर सुखपृच्छा की तो संतवृंद की ओर से मुनि धर्मरूचिजी ने साध्वियों की सुखपृच्छा और मंगलकामना की। नवदीक्षित साध्वियों व समणियों ने भी संतों से सुखपृच्छा की।
आचार्यश्री के अभिनंदन में उपाध्यक्ष श्री अमृत खांटेड़, श्री नरेश मेहता व श्री छतर खटेड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्रीमती रेणु कोठारी ने गीत का संगान किया।
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