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मोक्ष का सुख ही स्थाई सुख–युगप्रधान आचार्य महाश्रमण

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– बहुश्रुत परिषद संयोजक मुनि श्री महेंद्र कुमार जी की स्मृति सभा का आयोजन

– एम.के.जि.एम. विद्यालय प्रांगण में शांतिदूत का भावभीना स्वागत

कंडारी/बड़ौदा।अपने प्रवचनों द्वारा सिद्धांतों की सरल व्याख्या कर आध्यात्मिक मूल्यों की पुनर्स्थापना करते हुए जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के यशस्वी पट्टधर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सूरत की ओर प्रवर्धमान है। इसी क्रम में आज सुबह पूज्य गुरुदेव का सी.सी. पटेल ग्लोबल स्कूल, पोर से मंगल विहार हुआ। जनकल्याण करते हुए अणुव्रत अनुशास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 48 पर निरंतर गतिशील है। लगभग 10 किलोमीटर विहार कर आचार्यप्रवर मानव केंद्र ज्ञान मंदिर स्कूल, कंडारी में प्रवास हेतु पधारे। इस अवसर पर विद्यालय के प्रिंसिपल सहित विद्यार्थियों ने पंक्तिबद्ध हो आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। आज पूज्य सन्निधि में आगममनीषी मुनि श्री महेंद्र कुमार जी की स्मृति सभा का भी आयोजन हुआ। ज्ञातव्य है की मुनिश्री तेरापंथ धर्मसंघ की बहुश्रुत परिषद के संयोजक के रूप नियुक्त थे। गत 06 अप्रैल को मुंबई में मुनिश्री का देवलोक गमन हुआ। 

प्रवचन सभा में उद्बोधन प्रदान करते हुए गुरुदेव ने कहा– हमारे इस जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए मोक्ष। हम मोक्ष प्राप्ति की साधना करते रहें। हमारा यह जीवन सीमित काल का है। ऐसे में अनेक भौतिक साधन मिलने पर भी वे सब अस्थाई होते है, क्योंकि हर सांसारिक प्राणी की मृत्यु निश्चित है। स्थाई सुख केवल मोक्ष का सुख होता है। भारत के पास ज्ञान संपदा है, ग्रन्थ संपदा है, संत संपदा है और पंथ संपदा भी है ये विशेष बातें होती है। ये सब मोक्ष के सहायक तत्व बन सकते हैं। किंतु संस्कार शून्य ज्ञान अपूर्ण है। अतः ज्ञान के साथ संस्कारों का भी विकास हो व उनका प्रयोग भी हो। विद्यार्थी अध्ययन में जीने की कला व जीवन विज्ञान की दिशा में भी आगे बढ़ते रहें। अच्छी व सच्ची बात जहाँ से भी मिले वह ग्रहण कर लेनी चाहिये। व्यक्ति स्वयं के कर्मों का फल ही भोगता है।

*- मुनि श्री महेंद्र कुमार जी संघ के उच्च कोटि के विद्वान संत थे*
स्मृति सभा के अंतर्गत आचार्यश्री ने कहा– मुनिश्री महेंद्र कुमार जी आचार्य श्री तुलसी के द्वारा दीक्षित थे। काफी वर्षों तक वे गुरुकुल वास में भी रहे। ज्ञान के क्षेत्र में उनका अच्छा विकास था। उन्होंने प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में भी काफी कार्य किया और जैन विश्व भारती संस्थान से भी वे जुड़े हुए थे। आगम वांग्मय, विज्ञान आदि विषयों में उनका गहरा ज्ञान था। प्राकृत, संस्कृत, जर्मनी, गुजराती जैसी कई भाषाओं का उन्हें ज्ञान था। हमारे संघ की बहुश्रूत परिषद के संयोजक के रूप में वे सेवा दे रहे थे। आगम संपादन के कार्य में उनका बड़ा योगदान रहा। भगवती भाष्य सहित अनेकों आगामों के संपादन, अनुवाद, भाष्य आदि कार्यों में उन्होंने अपना श्रम नियोजित किया। मुनिश्री महेंद्र कुमार जी संघ के उच्च कोटि के विद्वान संत थे। उनकी संघ भक्ति, गुरु भक्ति भी अनुकरणीय थी। एक विशिष्ट संत चले गए। उनका जाना संघ के लिये क्षति है। हम मुंबई की ओर जा रहे थे किंतु नियति ने मानों प्रतीक्षा नहीं की, और मिलना नहीं हुआ। उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना प्रकट करते है। 

भावाभिव्यक्ति के क्रम में मुख्य मुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने मुनिश्री की आत्मा के प्रति मंगलकामना व्यक्त की। तत्पश्चात मुनि श्री धर्मरुचि, मुनि श्री कुमारश्रमण, मुनि श्री योगेश कुमार, मुनि श्री रजनीश कुमार, मुनि श्री जितेन्द्र कुमार, मुनि श्री अक्षयप्रकाश, मुनि मनन कुमार, मुनि श्री सुधांशु, मुनि श्री गौरव कुमार जी ने अपने विचार रखे। संत वृंद ने सामुहिक गीत का संगान किया। 
मुंबई प्रवास व्यवस्था समिति एवं सभा अध्यक्ष श्री मदन तातेड, सुरेंद्र कोठारी, महेश बाफना, मनोहर गोखरू ने विचारों की अभिव्यक्ति दी।

कार्यक्रम में विद्यालय के प्रिंसिपल श्री महेंद्र सिंह दिहोद ने शांतिदूत का स्वागत किया। विद्यार्थियों ने गीत का संगान कर अभिनंदन में प्रस्तुति दी। गुरुदेव की प्रेरणा से सभी ने अणुव्रत के संकल्पों को स्वीकार किया।

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