कर्म बंधन के कारणों का उल्लेख करते हुए संवर की साधना करने की दी प्रेरणा
तेरापंथ महिला मंडल की संगोष्ठी का आयोजन
पूर्वांचल बांगुड । आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि जिनेशकुमारजी ठाणा 3 सान्निध्य में लेकटाउन व बांगुड़ क्षेत्र की महिलाओं की संगोष्ठी तोदी भवन में आयोजित हुई।
■ महिला होती समता, ममता, क्षमता की प्रतिमूर्ति
इस अवसर पर मुनिश्री जिनेशकुमारजी ने कहा कि महिला समाज की धुरी है। महिला को स्वस्थ रहना जरूरी है। महिलाओं के स्वस्थ रहने से ही घर-परिवार व्यवस्थित ढंग से रह सकता है। महिला दिल का दरियाव है, महिला समता, ममता, क्षमता की प्रतिमूर्ति हैं। महिलाओं में श्रद्धाभक्ति विशेष होती है। महिलाओं के विकास में शिक्षा, चरित्र, संयम, संस्कार जैसे तत्व उपयोगी होते हैं।
■ पदार्थ के प्रति आकांक्षा का हो अल्पिकरण
मुनिश्री ने आगे कहा कि कर्म बंधन का कारण आश्रव है और कर्म मुक्ति का कारण संवर है। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय, योग कर्म बंधन के कारण है। पदार्थ के प्रति जितनी आकांक्षा रहती है, उतना ही व्यक्ति दुःखी होता है और असंयम, हिंसा व भोग की ओर जाता है। त्याग धर्म है। त्याग से अव्रत रुकता है।
■ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप के प्रति रहे सजग
मुनिश्री ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जानना, मानना, पालना, टालना आत्म शुद्धि में सहायक होते हैं। जानना ज्ञान है, मानना दर्शन है, पालना चारित्र है, टालना- परहेज रखना तप है। जीवन में ज्ञान का मुल्य है। ज्ञान की प्राप्ति का साधन स्वाध्याय है। स्वाध्याय से अध्यवसाय निर्मल होते है, भावधारा पवित्र होती है। ज्ञान के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए। चारित्र की साधना ऊंची साधना है। चारित्र बहुत बड़ी शक्ति है। तप से आत्मा निर्मल होती है।
इस अवसर पर क्षेत्रीय संयोजिका गुलाबदेवी चौरड़िया ने अपने विचार रखे। गोष्ठी में अच्छी संख्या में महिलाएं उपस्थित थी।