सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने सोमवार 4 नवंबर को प्रवचन में कहा कि मन कोमल है, मन हमेशा सुविधा चाहता हैं। संसार में रहने वाले व्यक्तियों का मन संसारिक सुविधाओं की ओर दौड़ता है। जिन्होंने संसार का त्याग कर अध्यात्म में प्रवेश किया है, साधु जीवन अपनाया है उनका मन आध्यात्मिक सुविधाओं की ओर दौड़ता है। सुविधा सुविधाओं में अंतर है आपको इंद्रियों के सुख में सुविधा मालूम पड़ती है साधु को उनकी क्रिया में सुविधा मालूम पड़ती है जिससे अंत करण रोशन होता है। आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने नदी - समंदर का उदाहरण देते हुए कहां की जुड़ने और मिलने में अंतर है। अस्तित्व की स्वतंत्रता से साथ हो गए। मिलन का अर्थ होता है अपने अस्तित्व को विलीन करना, समाप्त करना। जीवन में सुख - दु:खों को सहन करना सीखो। दु:ख में उदास नहीं होना है और सुख में इतराना नहीं है। जिंदगी में कभी हारो नहीं, प्रतिकूलता में भी नहीं। अंतिम क्षण तक प्रयास करें। आकांक्षा हमेशा बढ़ती ही जाती है। सातम, आठम और नवमी को दीक्षा मुहूर्त, सातम को दोनों नूतन मुनियों की बड़ी दीक्षा होगी।