दीपावली महा मंगलपाठ में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
-महावीर के प्रतिनिधि ने भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर जनता को दी पावन प्रेरणा*
सूरत।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को भगवान महावीर की 2551वीं निर्वाण कल्याणक को आध्यात्मिक रूप में मनाया गया। इस संदर्भ में समुपस्थित जनता को आचार्यश्री ने भगवान महावीर के विषय में प्रेरणा प्रदान करते हुए अपने जीवन को मोक्ष प्राप्ति की दिशा में गतिमान करने की प्रेरणा प्रदान की तो उसके साथ ही आचार्यश्री ने दीपावली के संदर्भ में तेले के अनुष्ठान में रत लोगों को तीसरे दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान कराया। गत रात्रि में दीपावली के संदर्भ में गुरुदेव द्वारा महा मंगलपाठ फरमाया गया। महा मंगलपाठ में उपस्थित हजारों लोगों की जनमेदिनी के समक्ष विशाल प्रवचन पांडाल भी छोटा नजर आ रहा था। मंगलपाठ के पश्चात चरणस्पर्श का क्रम रहा जिसमें गुरुदेव के चरण वंदना कर श्रद्धालुओं ने दीपमालिका के पावन दिन आशीर्वाद प्राप्त किया।
महातपस्वी, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगमाधारित मंगल प्रवचन में शुक्रवार को समुपस्थित जनता को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि एक शब्द बताया गया है-निष्कर्मदर्शी। सभी प्राणी कर्म करते हैं। वह मन से भी होता है, वाणी से भी प्रवृत्ति करता है और शरीर से भी प्रवृत्ति करता है। जैन तत्त्व विद्या में योगत्रयी अर्थात मनोयोग, वचनयोग और काययोग बताए गए हैं। जो प्रवृत्ति करता है, वह सकर्मा ही होता है। चौदहवें गुणस्थान में आदमी अकर्मा बन जाता है, क्योंकि वहां मन, वचन और काय की कोई प्रवृत्ति नहीं होती। चार अघाती कर्मों के संदर्भ में देखें तो वह भी सकर्मा होता है। मोक्ष को प्राप्त कर लेने वाली आत्मा पूर्णतया अकर्मा हो जाती है। अकर्मा बनने के लिए राग-द्वेष का छेदन करना आवश्यक हो जाता है।
बिल्कुल भी कर्म न रहे तो आदमी अकर्मा होता है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए राग-द्वेष का नाश करना भी आवश्यक होता है। आज कार्तिकी अमावस्या है। आज की यह तिथि एक ऐसी आत्मा के साथ जुड़ी हुई है, जिसने आज के दिन परमात्म पद को प्राप्त किया था, सिद्धात्मा बने थे। सिद्धात्मा बनने के लिए कितने घाटियों को पार करना पड़ा था। भगवान महावीर के पूर्व भवों को देखें तो कितनी-कितनी साधना-साधना, कितने कर्मों का अर्जन, सातवें नरक तक की गति आदि भी हुई। अंत में तीर्थंकर नाम गोत्र का बंध कर लिया और वे अगले जन्म के बाद मोक्ष को प्राप्त हुए।
यह अमावस्या भगवान महावीर के साथ गौतम स्वामी के साथ भी जुड़ी हुई है। इस दिन गौतम स्वामी को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। आज की तिथि चार अघाति कर्मों के क्षय करने की भी तिथि है। भगवान महावीर ने तीर्थंकर के रूप में देशना भी की और कितनों का कल्याण किया। ऐसा कहा जाता है कि लगभग पचास हजार उनके साधु-साध्वियां थे। आज भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण दिवस की भी बात है। भगवान महावीर राग-द्वेष विजेता थे। पुरुष संयम और तप के द्वारा राग-द्वेष को छिन्न कर आत्मदर्शी हो जाता है। भगवान महावीर ने राग-द्वेष छिन्न करने की साधना की और परम पद को प्राप्त किया। आदमी भी अपने जीवन में जितना संभव हो सके, संयम व तप के द्वारा राग-द्वेष को छिन्न करने का प्रयास करना चाहिए।
आज बहुश्रुत परिषद के सदस्य मुनिश्री की उदितकुमारजी स्वामी के जन्मदिवस के संदर्भ में कहा किl भगवान महावीर के साथ जुड़े हुए हैं। आज आप 65वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। मुनिश्री धर्मसंघ और दूसरों की सेवा का अवसर प्रयास होता रहे।