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भीतर में ज्ञान का दीप जलाकर आत्मा को उज्ज्वल बनाएं : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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- जीवन में ज्ञान की गहराई और आचार की ऊंचाई दोनों को बताया जरूरी

-मुख्यमुनिश्री को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में कुर्सी पर विराजित होने की प्रदान की बक्सीस

-चतुर्दशी के संदर्भ में चारित्रात्माओं को प्रदान की मंगल प्रेरणा 

वेसु, सूरत।कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी व अमावस्या। भारतीय संस्कृति का वैभवशाली दिन। भारत सहित सम्पूर्ण विश्व दीपावली का महापर्व मना रहा है। एक ओर भगवान राम से इसका संबंध है तो दूसरी ओर भगवान महावीर से भी जुड़ी हुई है। ऐसे महापर्व को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, देदीप्यमान महासूर्य, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि गुरुवार को दीपावली का महापर्व आध्यात्मिक वैभव के रूप में मनाया गया। जन-जन के मानस को अपनी आध्यात्मिक वाणी से आलोकित करने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी गुरुवार को महावीर समवसरण के मंच पर विराजमान हुए तो दोनों ओर आज समस्त चारित्रात्माएं भी उपस्थित थे। आज चतुर्दशी का संदर्भ था तो दीपावली का भी प्रसंग था। आचार्यश्री के दोनों ओर धवल वस्त्रधारी चारित्रात्माएं मानों अपने आचार्य की प्रस्फुरित रश्मियों की भांति प्रतीत हो रहे थे। 

ज्योति के इस महापर्व पर समुपस्थित जनता को समस्त चारित्रात्माओं को ज्योतिपुंज, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराने से पूर्व प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में कुछ समय तक सभी को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया। तदुपरान्त पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में दो शब्द बताया गया है- अग्र और मूल। इनके माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा गया है कि हे धीर! तू अग्र और मूल का विवेक कर। अग्र को भी समझना चाहिए और मूल को भी समझना चाहिए। उच्चता को अग्र के रूप में तो गंभीरता को मूल के रूप में देख सकते हैं। 

पर्वत में केवल ऊंचाई होती है और सागर में मात्र गहराई होती है, किन्तु मनस्वी व्यक्ति में ऊंचाई भी होती है और गहराई भी होती है। सिद्धों के लिए कहा गया है कि सागर से गंभीर, सूर्य से ज्यादा प्रकाशकर व चन्द्रमा से ज्यादा शीतलता प्रदान करने वाले होते हैं। आदमी को अपने जीवन में निर्मलता का, प्रकाशता का और अच्छी गंभीरता को भी आत्मसात करने का प्रयास करें। आदमी के जीवन में ज्ञान की गहराई होनी चाहिए और साधना की ऊंचाई हो। आदमी को चिंतन की गहराई में जाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अध्ययन, तत्त्व और शास्त्रों की गहराई में जाने का प्रयास करना चाहिए तथा आदमी के आचरणों में ऊंचाई रहनी चाहिए। आचार की ऊंचाई बढ़े तो जीवन में अग्र का ज्ञान भी हो सकता है और मूल के रूप में गहराई को भी जानने का प्रयास होता रहे। मानव जीवन में अनेक प्रकार की स्थितियां आती हैं। सभी परिस्थितियों के अग्र और मूल दोनों पर ध्यान दे लिया जाए तो परिस्थितियों को संभाला भी जा सकता है। 

आज कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी है और दीपमालिका का ज्योतिपर्व भी है। भगवान राम से जुड़ी हुई है। भगवान महावीर के महानिर्वाण से जुड़ती है। सामान्यतया अमावस्या तिथि को आदमी को छोड़ने का प्रयास किया जाता है, किन्तु महापुरुषों के साथ जुड़ी हुई अमावस्या भी कितनी उन्नत बन जाती है। आज दीपमालिका का दिन है। ज्योतिपर्व है। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने ‘ज्योति का अवतार बाबा, ज्योति ले आया।’ गीत का आंशिक किया। 

आज के अवसर पर आदमी को अपने भीतर ज्ञान का दीपक जलाने का प्रयास करना चाहिए। आगम व शास्त्र को कंठस्थ करके ज्ञान का दीपक जलाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने अनेक संतों को अपने पास बुलाया और ज्ञान के संदर्भ में प्रेरणा देते हुए अहिंसा, ज्ञान, शांति आदि की प्रेरणा प्रदान की। न्यारा में जाने वाले संतों को भी प्रेरणा प्रदान की। मुनि आकाशकुमारजी को अग्रणी संत के रूप में वंदना कराई और अच्छा कार्य करने की प्रेरणा प्रदान की। इसी प्रकार छोटी साध्वियों को भी प्रेरणा प्रदान की। 

आचार्यश्री ने चतुर्मास की सम्पन्नता के उपरान्त 16 नवम्बर को 8.40 बजे प्रस्थान करने की बात भी बताई। साधु-साध्वियों को विहार करने की तैयारी करने की प्रेरणा प्रदान की। नवदीक्षित साध्वियों ने संतों को वंदन किया तो मुनि धर्मरुचिजी ने संतों की ओर से उनके प्रति मंगलकामना अभिव्यक्त की। 

आचार्यश्री ने मुख्यमुनिश्री को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में कुर्सी की बक्सीस की। गुरु की ऐसी कृपा देखकर पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष कर उठा। आचार्यश्री ने हाजरी के क्रम को संपादित किया। आचार्यश्री की अनुज्ञा से नवदीक्षित दोनों साध्वियों ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने उन्हें 21-21 कल्याणक बक्सीस की। उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। दीपावली के संदर्भ में साध्वीवृंद द्वारा गीत का संगान किया।

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