अहमदाबाद।अहमदाबाद के गिरधर नगर जैन संघ शाहीबाग में आज प्रातःकालीन प्रवचन में आचार्य भगवंत श्री ह्रींकारयश सुरिश्वरजी ने महत्वपूर्ण धर्मोपदेश दिया। आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में जिनधर्म और मोक्ष मार्ग की व्याख्या की, जिसमें अनेक श्रोताओं ने भाग लिया।
आचार्य श्री ने कहा, "किसी जीव के लिए भी अशुभ विचार नही करना, यह सबसे बड़ा जिनधर्म है!"। उन्होंने संसार और मोक्ष के बीच का भेद स्पष्ट किया, जहाँ संसार में आधि-व्याधि-उपाधि सतत रूप से आती रहती हैं, वहीं मोक्ष में इनका कोई स्थान नहीं होता।
मन की साधना पर जोर देते हुए आचार्य श्री ने कहा, "मनपूर्वक तो अनेक भवों में साधना की है, इस भव में ऐसी साधना करनी है, जिससे मन ही ना रहें!"यह संदेश उन्होंने आत्मा के उच्चतर स्तर को प्राप्त करने के महत्व को दर्शाने के लिए दिया।
संवाददाता दिनेश देवड़ा धोका ने बताया कि आचार्य श्री ने सद्भाव और मैत्रीभाव की महत्ता पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने समझाया कि सद्भाव अवश्य तारक है, यदि दुर्भाव न हो तो, और मैत्रीभाव अवश्य तारक है, यदि द्वेष न हो तो।
आचार्य श्री ने कहा, "संज्ञामय और प्रज्ञामय जीवन तो अनंता भवों से तुं जी रहा है, आज से आज्ञामय जीवन जीने का संकल्प कर!"। यह जीवन जीने की एक नई दिशा को अपनाने का आह्वान था, जिसमें आज्ञा और शांति का महत्व सर्वोपरि है।
आखिर में, आचार्य श्री ने बताया कि मोक्ष न प्राप्त होने का कारण यह नहीं है कि हमने आराधना कम की है, बल्कि यह है कि जो भी आराधना की है, वो हमारे मन के हिसाब से की है, इसलिए हमारा मोक्ष नहीं हुआ है।
यह प्रवचन श्रोताओं को आत्मचिंतन और आत्ममंथन के लिए प्रेरित करने वाला था। संवाददाता दिनेश देवड़ा धोका के अनुसार, इस प्रवचन से श्रोताओं को जिनधर्म की गहराइयों को समझने और आत्मा की शुद्धि के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिली।