सुरत।गिरधर नगर जैन संघ में आज पूज्य आचार्य श्री लब्धिसूरीश्वरजी की 63वीं पुण्यतिथि पर एक भव्य और भावपूर्ण गुणानुवाद सभा का आयोजन आ.भ.श्री यशोवर्म सूरिश्वरजी की निश्रा में संपन्न हुआ। इस अवसर पर उनके महान व्यक्तित्व और अद्वितीय कृतित्व को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सभा में आचार्यश्री की विभिन्न उपाधियों, उनके साहित्यिक योगदान, और उनके द्वारा किए गए धर्म कार्यों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया।
पूज्य आचार्य श्री लब्धिसूरीश्वरजी, जिन्हें बीसवीं सदी के समर्थ महापुरुष के रूप में सम्मान प्राप्त है, जैन धर्म के एक अद्वितीय स्तंभ थे। उन्हें "खम महात्मा," "जैनरत्न," "व्याख्यान वाचस्पति," "वादिविजेता," "अपार्थिव ज्योतिहरे," "बहुश्रुत गीतार्थ," "सूरिसार्वभौम," "कविकुलकिरीट," और "अजात शत्रु महापुरुष" जैसे प्रतिष्ठित उपाधियों से विभूषित किया गया था। उनके जीवन में प्रबल वैराग्य की भावना थी, जिसने उन्हें दीक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया। गुरु के प्रति उनकी अटूट भक्ति और शुद्ध चारित्र का पालन उन्हें जैन शासन का सशक्त ध्वजवाहक बनाता है।
इस विशेष अवसर पर, आ.भ.श्री यशोवर्म सूरिश्वरजी की निश्रा में दादा गुरुदेव द्वारा रचित ग्रंथों की प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसमें उनके जीवनकाल में रचित ग्रंथों और उनकी रचना की परिस्थितियों की विस्तृत जानकारी बैनर लगाकर दी गई। दादा गुरुदेव के ग्रंथों की श्रुत वधामना के लिए भारत भर से विद्वान पंडित गिरधर नगर में पधारे थे। इनमें चं. रुपेन्द्रभाई पंगारीया, चे. वसंतभाई, च. चौरिक भाई, और किरीट ग्राफिक्स के किरीट भाई जैसे प्रमुख गुरुभक्त शामिल थे। सभा में उपस्थित सभी महात्माओं ने आचार्यश्री के जीवन के उत्कृष्ट कार्यों और उनके द्वारा रचित ग्रंथों पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं।
**संवाददाता दिनेश देवड़ा धोका के अनुसार**, पूज्य आचार्यश्री का जीवन एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था, "मैंने मेरे जीवन में कभी किसी की निंदा की हो, ऐसा मुझे याद नहीं है।" उन्होंने यह भी उपदेश दिया था कि यदि कभी निंदा करने का मन हो, तो उन्हें याद करें, जिससे निंदा के भाव मिट जाएंगे। उनका यह संदेश आज भी उनके अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।
गिरधर नगर में आयोजित इस गुणानुवाद सभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे, जिन्होंने आ.भ.श्री यशोवर्म सूरिश्वरजी की निश्रा में पूज्य आचार्यश्री के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त की। इस सभा ने पूज्य आचार्यश्री के जीवन, उनके असाधारण कार्यों, और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों को स्मरण करते हुए सभी को उनके मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। पूज्य आचार्य श्री लब्धिसूरीश्वरजी महाराजा की पुण्यतिथि पर आयोजित इस सभा ने समाज को एक बार फिर उनके उपदेशों से मार्गदर्शन प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया।