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त्रसकाय के जीवों की हिंसा से बचे मानव: युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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-आचार्यश्री ने आगम के द्वारा त्रस व स्थावरकाय के जीवों का किया वर्णन

-पूज्य सन्निधि में आयोजित हुई साध्वी लावण्यश्रीजी की स्मृति सभा

सूरत।महावीर समवसरण में गुरुवार जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, आध्यात्मिक सुगुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी आगमवाणी के द्वारा पावन पाथेय प्रदान करने से पूर्व गत दिनों कालधर्म को प्राप्त हुई साध्वीश्री लावण्यश्रीजी की स्मृतिसभा का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी व मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने आध्यात्मिक मंगलकामना की। तदुपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी ने साध्वी लावण्यश्रीजी के संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के ऊर्ध्वारोहण के लिए आध्यात्मिक मंगलकामना की। उनकी आत्मा की शांति के लिए आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया। 

स्मृति सभा के उपरान्त महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से मंगल देशना देते हुए कहा कि इसे संसार कहा जाता है। षटजीव निकाय में पांच स्थावरकाय और एक त्रसकाय होते हैं। एक अपेक्षा से देखें तो पृथ्वीकाय, अपकाय व वनस्पतिकाय तीन स्थावर और तेजसकाय, वायुकाय व त्रसकाय ये तीन त्रसकाय होते हैं। तेजस और वायुकाय एक अपेक्षा से त्रसगति वाले माने गए हैं। पृथ्वीकाय, अपकाय और वनस्पतिकाय स्थावरकाय हैं। छहजीव निकाय में त्रसकाय द्विन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों का एक समूह है। त्रसकाय के जीव गति करने वाले होते हैं, इसलिए त्रसकाय को संसार कहा जा सकता है। त्रसकाय के जीवों की वेदना तो स्पष्ट दिखाई देती है, जिसके जीवत्व को मंद आदमी भी पहचान सकता है। 

स्थावर जीव मानव जीवन को चलायमान रखने, टिकाए रखने में सहायक होते हैं। जीवन को चलाने के लिए स्थावर जीवों के प्राणातिपात होना तो आवश्यक ही हो जाता है। इससे सामान्य मनुष्य तो क्या साधु भी नहीं बच सकते। स्थावरकाय के जीवों के प्रति संदेह भले हो सकता है, किन्तु त्रसकाय के जीव तो स्पष्ट भी जाने जाते हैं। उन्हें तो कोई मंदमति भी जानता है। इसलिए आदमी को त्रसकाय जीवों को कष्ट न पहुंचे, अथवा उनकी हिंसा न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आयारो आगम की वाणी से प्रेरणा लेकर त्रसकाय के जीवों हिंसा से प्राणी को बचने का प्रयास करना चाहिए। 

साध्वी लावण्यश्रीजी की स्मृति सभा के शेष कार्यक्रम को प्रवचन के उपरान्त प्रारम्भ किया गया। इस क्रम में साध्वी दर्शनविभाजी, मुनि जितेन्द्रकुमारजी, साध्वी परागप्रभाजी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा-सिंधनूर के मंत्री श्री आनंद जीरावला ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तत्पश्चात ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया। 

 

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