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वाणी,व्यवहार, चिंतन व शारीरिक चेष्टा में भी व्याप्त हो अहिंसा : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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 -महावीर समवसरण में पधारे भगवान महावीर के प्रतिनिधि

-आयारो आगम के माध्यम से आचार्यश्री जनता को अहिंसा के प्रति किया जागरूक 

-साध्वीप्रमुखाजी व साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया उद्बोधित 

वेसु, सूरत।जन-जन का कल्याण करने के लिए निरंतर अपनी वाणी से जीवन को उन्नत बनाने की प्रेरणा प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में सूरत शहर में अपना पावन चातुर्मास कर रहे हैं। भगवान महावीर युनिवर्सिटी के परिसर में बने चातुर्मास प्रवास स्थल में देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालु भी इस अवसर का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। मंगलवार को प्रातः निर्धारित समय पर भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी महावीर समवसरण में पधारे। उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम के प्रथम अध्ययन में कहा गया है कि आदमी हिंसा में प्रवृत्त होता है। वह छह जीव निकायों की हिंसा कर लेता है। आदमी मकान बनाने में आदि चक्कर में कितने-कितने प्रकार के जीवों की हिंसा हो सकती है तथा अन्य प्रसंगों में भी जीवों की हिंसा हो सकती है। कभी-कभी आदमी मनोरंजन के लिए चाहे-अनचाहे प्राणियों को कष्ट में डाल देता है। भोजन आदि के कार्य में भी हिंसा होती है। हालांकि मकान,भोजन इत्यादि तो जीवन के लिए आवश्यक होता है, तो वैसी हिंसा तो अपेक्षित हो सकती है, किन्तु आदमी अपने जीवन में यह प्रयास करे कि अनपेक्षित हिंसा न करे। अनपेक्षित हिंसा अथवा किसी प्राणी को कष्ट देने से बचने का प्रयास करना चाहिए। 

वर्तमान में चातुर्मास काल चल रहा है। यह समय अहिंसा,धर्म,अध्यात्म के विशेष साधना का समय है। कितने लोग खान-पान का संयम,उपवास के साथ पौषध आदि के द्वारा अहिंसा की साधना चलती है। साधुओं का जीवन तो अहिंसामय होना ही चाहिए, गृहस्थों के जीवन में भी जितना संभव हो सके,अहिंसा का भाव रहे। वाणी में,व्यवहार और चिंतन में अधिक से अधिक अहिंसा का पालन करने का लक्ष्य होना चाहिए। 

आदमी को अपने जीवन में कषायों कम करने का प्रयास करे। गुस्से पर नियंत्रण हो,माया,छलना से बचने का प्रयास हो,विशेष अहंकार न हो,लोभ को कम करने का प्रयास हो। इस प्रकार आदमी को अपने जीवन में ज्यादा से ज्यादा अहिंसा की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को लोगस्स के संदर्भ में विस्तृत जानकारी दी। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को उद्बोधित करते हुए वीतराग और अर्हत की स्थिति प्राप्त करने के लिए अपने चित्त को निर्मल बनाने की प्रेरणा प्रदान की।  

 

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