22 किमी का प्रलंब विहार कर ज्योतिचरण पधारे बारडोली
- बारडोलीवासियों पर बरसी गुरु कृपा एक दिन पूर्व पधारे गुरुदेव
बारडोली।तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ सूरत शहर में चातुर्मास करने हेतु प्रवर्धमान है। अब लगभग 50 किमी से भी कम दूरी सूरत के लिए शेष है। पुनः तेरह माह पश्चात आराध्य के शुभागमन से सकल समाज में उत्साह है तो सूरत में होने जा रहे चातुर्मास के लिए श्रद्धालु आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे है। आगामी 13 जुलाई को सूरत शहर में शांतिदूत का प्रवेश होगा जिसके पश्चात 15 जुलाई को भव्य चतुर्मासिक प्रवेश निर्धारित है। चतुर्विध धर्मसंघ के साथ गतिमान आचार्य श्री का आज आफला में पदार्पण हुआ। बाजीपुरा में श्रद्धालुओं पर कृपा वर्षा कर गुरुदेव ने प्रातः वहा से प्रस्थान किया। विहार में आज सूरत एवं आसपास के अनेक क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु गुरु सन्निधि में उपस्थित थे। कई दिनों बाद आज आसमान से सूर्य भी अपनी चमक जोरों से बिखेर रहा था तो धरती पर मानों तेजस्विता के महापुंज ज्योतिचरण गुरुदेव अध्यात्म रश्मियों से सबको पावन बना रहे थे। लगभग 15.5 किमी का प्रलंब विहार कर आचार्य श्री आफला के जलसा फार्म हाउस में प्रवास हेतु पधारे। मध्यान्ह में पुनः लगभग 6.5 किमी विहार कर गुरुदेव बारडोली तेरापंथ भवन पधारे। एक दिन में लगभग 22 किमी प्रलम्ब विहार कर आचार्यश्री ने बारडोली वासियों पर कृपा की ओर एक दिन पूर्व ही पधार गए। अनहद गुरु कृपा प्राप्त कर बारडोलीवासी धन्यता की अनुभूति कर रहे थे। गुरुदेव के स्वागत में मानों पूरा बारडोली महाश्रमण मय बन गया। आज बहिर्विहार से समागत साध्वियों के कई सिंघाड़े भी गुरुदर्शन को पहुंचे।
धर्म सभा को उद्बोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा - इस जगत में कोई भी हमारा त्राण नहीं होता शरण नहीं होता। केवल एक धर्म ही है जो हमारा सच्ची शरण है। कोई भी जीवन में आने वाली मृत्यु को में रोक सकता। उम्र बढ़ने पर बुढ़ापे से कोई नहीं बचा सकता, ना ही कोई बीमारी आदि रोगों से त्राण पा सकता है। निश्चय में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो मृत्य, बुढ़ापा और रोगों से व्यक्ति को बचा सके। यह दुनिया की अशरणता है। व्यवहार में कोई किसी का त्राण भले बन भी जाएं किंतु निश्चय में कोई किसी का त्राण नहीं है। तो प्रश्न हो सकता की दुनिया में कोई त्राण है या नहीं ? इसका समाधान है धर्म। केवली प्रज्ञप्त धर्म शरण है। धर्म से जुड़े हुए अरिहंत, सिद्ध, साधु इनकी भी शरण ली जाती है। केवल एक धर्म ही व्यक्ति का अपना सगा है। गुरुदेव ने आगे कहा की गुरु हमे धर्म पर चलने का मार्ग बताते है। किंतु उस पर व्यक्ति को स्वयं धर्म पर चलाना होगा। गुरु पथदर्शन प्रदान करते है फिर स्वयं को पुरुषार्थ करना होगा। ज्ञान के अनुसार व्यक्ति को अपने जीवन को संवारना चाहिए।
तत्पश्चात कई क्षेत्रों से विहार कर पधारी साध्वियों ने सामूहिक गीत की प्रस्तुति द्वारा आराध्य के प्रति भावाभिव्यक्ति दी।