अलथान शेल्टर होम में चार अंधजन मित्रों ने शुरू किया दोना बनाने का बिजनेस:प्रॉडक्शन,मार्केटिंग,पैकेजिंग करते हैं स्वयं
सूरत में मेरा अपना छोटा सा बिज़नेस करने का सपना हुआ पूरा: विपिन काछड़िया
.
मेरा अनुभव है कि अपनी मदद खुद करें,तभी ईश्वर आपकी मदद करेगा :अल्पेश पटेल
......
सूरत। "हिम्मत ए मर्दा तो मददे खुदा"कहावत अनुसार जो इंसान हिम्मत रखते हैं यानी कोशिश करना नहीं छोड़ते उनकी भगवान स्वयं सहायता करता है। कुछ ऐसा ही किस्सा है दिनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत सूरत महानगर पालिका द्वारा संचालित अलथान शेल्टर होम में रहते चार अंधजन मित्रों का,जो अपनी शारीरिक मर्यादाओ को लाँघकर लगातार कोशिश और कठिन परिश्रम से आत्मनिर्भर बने है। वे पेपर प्लेट ऑटोमेटिक मशीन की मदद से पेपर प्लेट,कागज़ के दोना बनाते है। वे न सिर्फ़ अपना बिज़नेस स्वयं चलाते है बल्कि प्रॉडक्शन, मार्केटिंग,पैकेजिंग भी खुद करते है।
दाहोद के वरमखेड़ा गांव से आये 38 वर्षीय अल्पेश पटेल ने शेल्टर होम में कुछ समय बिताने के बाद अपने मित्र अल्पेशभाई काछड़िया को यहाँ बुला कर एक छोटे से बिज़नस की शुरुआत की।अल्पेशभाई से बात करते मुझे मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा शेर याद आया-'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया'। ठीक उसी तरह से अल्पेशभाई को हेल्प डिवाइन फाउण्डेशन द्वारा पेपर प्लेट ऑटोमेटिक मशीन की सुविधा मिली।जिससे कागज़ के दोने,नाश्ते की प्लेट,भोजन के पत्तल बनाने का काम शुरू किया। ग्राहकों की माँग बढ़ने से मदद के लिए अल्पेश अपने तीन मित्र विपिन काछड़िया, अजय गामित (20), मोहित पटेल (20) जो मूलतः भावनगर और दाहोद से है इन्हे बुलाते है।
अल्पेश पटेल अपने बिज़नस में उत्पादन (प्रॉडक्शन)का काम सँभालते है।वो कहते है कि पाँच साल पहले एक अकस्मात में मैंने अपनी दृष्टि खो दी। मैंने B.Ed तक की पढ़ाई की हैं और साथ में एक साल का पढ़ाने का अनुभव है।दृष्टि खोने के बाद बहुत सी प्राइवेट कंपनी में काम किया। जहां कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा फिर मुझे एहसास हुआ की मैं छोटा-मोटा बिज़नस कर सकता हूँ। मैंने तरुणभाई के सामने अपना विचार रखा और उनके द्वारा प्राप्त मशीन से हमने शेल्टर होम में ही ग्राहकों की माँग के अनुसार सामान (प्रॉडक्ट)बनाना शुरू कर दिया।नौकरी से बहार निकल अब अपने बिज़नेस से अच्छा महसूस कर रहा हूँ। हम महीने में प्रति व्यक्ति सात से दस हज़ार तक की कमाई कर लेते है।अल्पेश अपना अनुभव बताते हुए कहते है कि अपनी मदद खुद करें तभी भगवान आपकी मदद करेगा।
भावनगर के 35 वर्षीय विपिन काछड़िया अपने बिज़नेस में मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन का काम संभालते हैं। वो अपने बारे में बताते हैं कि वर्ष 2005 में मैंने अपनी दृष्टि खो दी। जिसके कारण मेरे जीवन में निराशा के बादल छाने लगे लेकिन मैं हिम्मत से आगे बढ़ा। जीवन में सकारात्मकता से भरे लोग मिले जिसके कारण मेरे जीवन में परिवर्तन आया। दृष्टि खोने के बाद भी विपिन ने आई.टी.आई कि पढ़ाई की। प्राइवेट कंपनीओ में काम किया तथा सरकारी विभागों की स्पर्धात्मक परीक्षा में भाग लिया है।उन्होंने आगे बताया कि इतनी मुश्किलों के बाद अब जाके उनका बिज़नस करने की इच्छा पूरी हुई है। उत्पादन (प्रॉडक्शन) का काम बढ़ा और मैंने दाहोद से अपने दो मित्र अजय गामित,मोहित पटेल को शेल्टर होम में मदद के लिए बुला लिया। अजय और मोहित पेकिंग का काम संभालते है।आने वाले समय में ग्राहकों का प्रोत्साहक अच्छा प्रतिसाद मिला तो हमारे काम से अन्य दस लोगों को रोज़गार मिलेगा यह मेरा मानना है।
ज्योति सामाजिक सेवा संस्था के जनरल सेक्रेटरी तथा हेल्प डिवाइन फाउण्डेशन के संस्थापक तरुन मिश्रा दिव्यांग, अंधजन लोगों कि मदद करने का कारण यही है की इनका कोई अपने फ़ायदे के लिए उपयोग न कर सके। बहुत-सी प्राइवेट कंपनियों में दिव्यांग, अंधजन द्वारा ज्यादा प्रोडक्टिविटी न मिलने के कारण और उनके काम का मर्यादित दायरा होने की वजह से रोजगार नहीं मिल पाता है। दिव्यांग जनो के आत्म सम्मान को कोई ठेस न पहुंचा सके इसके लिए हमने पेपर प्लेट ऑटोमेटिक मशीन की सुविधा दी बाकी का काम यह अपने तरीके से करते हैं।
आज के इस डिप्रेशन के दौर में जहां हम आए दिन अखबारों या टीवी चैनल में आत्महत्या कि खबरे पढ़ते-सुनते है। वहां ये चार दिव्यांग मित्रों की कहानी आज के युवाओं के लिए किसी इंस्पिरेशनल मूवी स्टोरी से कम नही हैं। इन वीर और साहसी लोगों का उदाहरण हमें यह सिखाता है कि अगर किसी को अपने मनोबल और मेहनत पर यकीन है, तो वे किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
(ख़ास लेख: मनीषा शुक्ला)