जैन धर्म का मूल स्वरुप क्या था ? और आज जैन धर्म का क्या स्वरूप हो गया है ? भगवान महावीर के समय का एक अखंड जैन समाज आज विभिन्न पंथो मे बिखरा पड़ा है. दिगम्बर, श्वेताम्बर तक तो ठीक था, पर अब ना जाने कितने गच्छ, कितने पंथ ? जैन धर्म के नाम पर कुछ लोगो ने तो कमाने की दुकान तक खोल दी है. धर्म के प्रति लोगो की अज्ञानता का फायदा उठाकर अपने स्वार्थो की पूर्ति के अनुसार धर्म की परिभाषा का अर्थघटन करके खुले आम जैन धर्म के सिदान्तो का माखोल उडाया जा रहा है. खेर मुख्य विषय पर चलते है
जैन समाज के लिए विचारणीय----
आज जैन समाज ने अपने अवदानों से देश मे ही नही सम्पूर्ण विश्व मे एक अलग पहचान बनाई है ! दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है. जैन धर्म जो कि अनादिकाल से चलता रहा है। इसकाे और आगे बढ़ाने की जरूरत है। जैन धर्म की शिक्षा देना आज की युवा पीढ़ी और छोटे बच्चों को अनिवार्य हो गया है। इससे उनमें त्याग ,तपस्या और संस्कारी होने की भावना आती है। जिस प्रकार स्कूल में छात्र को पढ़ाने के लिए अध्यापक जरूरी है वैसे उसकी प्रकार धर्म का प्रभावना करने के लिए समाज में जैन गुरु का होना जरूरी है। आज जैन समाज के दोनों प्रमुख घटक श्वेतांबर व दिगंबर मे सभी गुरु भले अलग अलग पंथ के अनुगामी है मगर सभी जैन धर्म गुरुओ का मिशन एक ही है ! जैन समाज काफी स्मृध है ! जैन समाज मे भामाशाहों की कमी भी नही दोनों खुले हाथो व दिमाग से कमाते है ! खुले हाथो से सेवा कार्यो मे दान भी देते है मगर कहावत है जहा माँ लक्ष्मी मेहरबान होती है वहा विवेक अनिवार्य है ! मगर अफसोस लक्ष्मी तो जैन समाज पर काफी मेहरबान है मगर विवेक की कमी जरूर महसूस हो रही है ! जैन समाज धार्मिक प्रसंगो पर सफ़ेदपॉश राजनेताओ को सादर आमंत्रित करती है ! जिनके कपड़े तो दूध से चमकते सफ़ेद है मगर दिल व नियत कोयले से भी काला ! ज्यादातर सफेदपोश नेता (कुछ को छोड़कर ) सूरा व सुंदरी का सेवन करते हुए मिल जाएंगे ! मांसाहार व मदिरा सेवन से अछूते नही होंगे ! भला इनका धार्मिक व सामाजिक मंच पर क्या जरूरत मेरी समझ से बाहर है ! आज जैन समाज मे साधू ,संत, आचार्य हमे चातुर्मास काल या अतिरिक्त काल मे लीलोत्री (हरी सब्जी ) , ज़मीकंद आदि का त्याग करने की प्रेरणा देते है ! ओर जब हमारे साधू साध्वी आचार्यगण जो मांसाहार करते है उनके यहा गोचरी ( आहार) नही लेते है केसी विडम्बना है उन्हे हमारा जैन समाज साधू संतो के प्रवचनो व आयोजनो मे अग्रिम पंक्ति मे सादर आमंत्रित करता है ! क्या कभी इन राजनेताओ को आमंत्रण प्रेषित करने से पहले पूछता है की आप मांसाहार का सेवन करते हो या नही अगर करते हो तो हम आपको आमंत्रण नही दे सकते ! समाज के चंद ठेकेदारो को तो नेताओ की नजर मे आना है ! बड़े खुश होते है की हमारी पहचान बढ़ेगी आखिर पहचान बनेगी को कभी काले कारनामे मे नेता जी मददगार बनेंगे ! जरूरत है समाज के साधू संतो व आचार्यो को आगे आकार इन भ्रष्ट राजनेताओ को बुलाने पर प्रतिबंध लगाना होगा ! अरे ये नेता हमे क्या सहायता करेंगे हमारा समाज ही बुद्धिजीवी है भले हम कुछ समय के लिए मार्ग से भटक गए है ! क्या आज जैन समाज शिक्षा मे अग्रणी होने के बाद भी राजनीति मे प्रवेश का पूर्ण अधिकारी नही है ! आज जैन समाज से बहुत ही कम लोग राजनीति मे मिलेंगे ! कुछ राजनीति मे पहुँच भी गए तो विवेक बुद्धि व सेवाभावना व मेहनत से नही अपनी काली कमाई से विवेक को त्याग कर राजनीतिक कुर्सी तक पहुंचे है ! ओर राजनीति के शीर्ष तक पहुँचते पहुचते विवेक से दूर विवेकहीन हो गए है ! फिर वहा पहुचने के बाद भी गिनेचुने को छोड़कर समाज के लिए कोई कुछ खास योगदान प्रदान नही किया ! आज जैन समाज मे साधू संतो के आयोजन व प्रवचन मे बड़े बड़े नेताओ को बुलाने की होड सी लगती है पर क्यू ? मेरी समझ मे नही आता ! उन्ही नेताओ को समाज के अग्रिम पंक्ति मे बेठने वाले सफ़ेदपॉश समाज के नेता कहु तो आतिशयोक्ति नही होगी ! क्यूकी गुण तो उनमे भी नेताओ से कम नही काली कमाई से समाज मे एक उच्च स्थान पा लिया ! मुझे उनसे भी शिकायत नही पर आज समाज मे उभरती प्रतिभा को क्यू नही सन्मान दिया जाता है ! क्यू नही उनकी होंसला अफजाई करके आगे बढ्ने को प्रेरित करते है ! जैन समाज के बहुत नही तो भी कुछ लोग तो उच्च पद पर या ख्याति प्राप्त मिल ही जाएंगे हा उन्हे कभी कभार समाज कुछ सन्मान जरूर प्रदान कर देता है ! मगर जरूरत है आज समाज मे उभरती प्रतिभा को सन्मान प्रदान किया जाये ! उन्हे आगे बढ्ने को प्रेरित किया जाये ! शिक्षा के क्षेत्र मे हो या व्यावसायिक क्षेत्र मे या पत्रकारिता के क्षेत्र मे या उच्च अधिकारी के क्षेत्र मे उनके इस संघर्ष के समय मे होंसला बढ़ाने की जरूरत है न की टांग खींचने की ! आज जैन समाज अनदेखा कर रही है यह एक सोचनीय विषय है ! अपने दायित्व से दूर भाग रहा है हमारा यह जैन समाज जरूरत है समाज के अग्रणी को अपने अभिमान को त्यागकर समाज की उभरती प्रतिभा को आगे लाने का प्रयास करना होगा ओर उन्हे उचित सन्मान प्रदान कर के आगे बढ्ने को प्रेरित करना होगा ! उन्ही मे से जनता के सेवक , राजनीतिज्ञ , डॉक्टर , वकील , पत्रकार , इंजीनियर , वेज्ञानिक व समाज सेवी की सेना बनेगी फिर हमे जरूरत नही पड़ेगी की भ्रस्ट राजनेताओ व अधिकारियों को हमारे धार्मिक मंच पर बुलाकर मंच पर दाग लगाए ! खेर मुझे मालूम है समाज के मोटी चमड़ी के लोगो को मेरी यह बात गले नही उतरेगी एक विद्रोही या पागल समझकर कुटिल हंसी समर्पित कर देंगे ! आज के युवा को सोचना होगा मनन करना होगा क्यू की युवा ही देश का भविष्य है समाज का भविष्य है ! आप सभी से मेरा अनुरोध मेरे विचारो को अन्यथा न लेकर मेरी भावनाओ को समझे ! जय जिनेन्द्र जय महावीर ……………….
उत्तम जैन विद्रोही