आचार्य श्री महाश्रमणजी का प्रवास राजमहल में हो इसके लिए की प्रार्थना
भुज।यूगप्रधान ,शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य डॉक्टर मुनिश्री पुलकित कुमारजी, मुनि आदित्य कुमार कच्छ राजपरिवार महाराव प्रागमलजी की धर्मपत्नी महारानी प्रीतिदेवी साहिबा के विशेष निवेदन पर राजमहल 'रणजितविलास' में पधारे।महारानी प्रीतिदेवी साहिबा ने राजमहल पदार्पण पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए मुनिश्री का स्वागत,अभिनंदन किया। भेंटवार्ता के दौरान मुनिश्री ने फरमाया भारतीय संस्कृति में ऋषि और कृषि का विशेष महत्व रहा है।यहां के राजा महाराजा भौतिक दृष्टि से कितने ही समृद्ध होते हुए भी संतों,मुनियों,ऋषियों के प्रति नतमस्तक रहे हैं। राज्य की खुशहाली के लिए आशीर्वाद लेते थे।संतों के तपस्यामय जीवन से बहुत प्रभावित रहते थे।उन्ही ऋषियों की परंपरा का वहन वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमणजी कर रहे हैं, जिनके द्वारा लगभग 53,000 किलोमीटर की पदयात्रा अब तक की जा चुकी हैं।मुनिश्री ने अहिंसा यात्रा के माध्यम से हुए जनकल्याणकारी कार्यों की अवगति दी। महारानी प्रीति देवी साहिबा ने कहा में जैन संतों की कठिन तपस्या, जीवनचर्या से बहुत प्रभावित हूं।आप यहां पधारे हमारा राजमहल पवन व धन्य हो गया। महारानीजी ने भक्ति भावपूर्वक मुनि श्री को भिक्षादान (गोचरी) करवाई।प्रीति देवी जी ने कहा आचार्य श्री महाश्रमणजी कच्छ में पधारने वाले हैं तो मेरा विनय पूर्वक निवेदन है कि आचार्यश्री का भी यहां राजमहल में पावन पगलिया एवं प्रवास हो यह मेरी तीव्र भावना है।उसके लिए मैं स्वयं मुंबई में गुरुदेव के दर्शन करके राजमहल पधारने की विनम्र प्रार्थना करूंगी। ज्ञातव्य हो कि महाराव प्रागमलजी को तेरापंथ समाज भुज के अनेक कार्यक्रम में उपस्थित रहने का अवसर प्राप्त हुआ था, उसकी यादगिरी रूप एक फोटो तथा अहिंसा यात्रा की पुस्तक एवं आचार्य श्री महाश्रमण साहित्य महारानीजी को कार्यकर्ताओं ने भेंट किया। इस अवसर पर तेरापंथी सभा भुज के अध्यक्ष वाडीभाई मेहता, पूर्व अध्यक्ष जीतूभाई शाह मेहता, अशोक खंडोल, तेरापंथ युवक परिषद के संगठनमंत्री आदर्श संघवी, सहमंत्री भाविक मेहता उपस्थित थे। उसी दिन राजमहल के निकट तेरापंथी श्रावक हितेश, नरेंद्र मनसुखभाई मेहता परिवार द्वारा खरीदी जगह पर मुनिश्री ने महारानी की उपस्थिति में मंगल पाठ सुनाया। जैन संस्कार विधि से भूमि पूजन कार्यक्रम हुआ। संस्कार के रूप में उपासक प्रभुभाई मेहता, भरत बाबरिया थे।इस अवसर पर जैन समाज एवं तेरापंथ समाज के अग्रणी बंधु विशेष रूप से उपस्थित थे।